Prachin bhartiya itihas ke srot – Part 2
(प्राचीन भारतीय इतिहास के स्त्रोत – भाग 2)
आज हम सब Prachin Bhartiya Itihas ke Srot ( प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत ) के विषय में पड़ेगे । पिछले पोस्ट में हमने पड़ा था की प्राचीन भारत के 4 स्रोत होते है , जिनमे से हम 2 स्रोत धर्मग्रंथ एवं इतिहासिक ग्रन्थ के विषय में पढ़ चुके है , आज हम विदेशिओ का विवरण या विदेशी यात्रा का विवरण में पड़ेगे ।
क्रेडिट – इस पोस्ट में लिए गए सभी ज्ञान लुसेंट की सामान्य ज्ञान की पुस्तक तथा NCERT की पुरतक से प्रेरित है एवं इन्ही पुस्तकों से सामग्री लेकर यह पोस्ट तैयार किया गया है ।
Videshi Yatra ka vivran (विदेशी यात्रा का विवरण )
विदेशी यात्रा से मिलने वाली जानकारी को हम कई भागो में बाँट कर पड़ेगे जिससे हमे समझने में आसानी हो । प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत के विषय में देखा जाये तो हमें 3 तरह के लेखक मिलते है ।
- यूनानी – रोमन लेखक
- चीनी लेखक
- अरबी लेखक
Prachin Bhartiya itihas ke srot me Unani -Roman Lekhak ka Varnan
(यूनानी – रोमन लेखक )
भारतीय इतिहास के स्रोत में 9 प्रशिद्ध लेखकों का वर्णन मिलता है , यूनानी – रोमन लेखक के अंतरगर्त । पहले हम सबके नाम जान लेते है , फिर सबसे विषय में विस्तार से पड़ेगे ।
- टेसियस ( ईरान )
- हेरोडोटस ( इतिहास के पिता )
- मेगस्थनीज ( इंडिका के लेखक )
- डाइमेकस
- डायोनिसियस
- टॉलमी ( जिओग्राफी के लेखक )
- प्लनी
- पेरिप्लस ऑफ थे इरिथ्रायण – सी ( यह एक किताब है , इसके लेखक के बारे में जानकारी नहीं है )
- सिकंदर के साथ आने वाले विद्वान ( निर्याकस ,आनेसिक्रटस एवं अरिस्टोबुलस )
टेसियस
यह एक ईरान का राजवैध था । भारत के सम्बन्ध में इसका विवरण आचर्यजनक कहानियो से परिपूर्ण होने के कारन अविश्वनीय है ।
हेरोडोटस
इसे इतिहास का पिता कहा जाता है । इसने अपनी हिस्टोरिका में 5 वीं शताब्दी इसा पूर्व के भारत फारस के सम्बन्ध का वर्णन किया है , परन्तु इनका विवरण भी अफवाहों पर आधारित है ।
मेगस्थनीज
ये सेल्यूकस निकेटर का राजदूत थे , जो चन्द्रगुप्त मौर्या के राजदरबार में आये थे । इन्होने अपनी पुस्तक इंडिका में मौर्या युगीन समाज एवं संस्कृति के विषय में लिखा है ।
डाइमेकस
यह सीरियन नरेश अंटिओकस का राजदूत था , जो बिन्दुसार के राजदरबर में आया था । इसका विवरण भी मौर्या – युग से सम्बंधित है ।
डायोनिसियस
यह मिश्र नरेश टॉलमी फिलेडेल्फस का राजदूत था , जो अशोक के राजदरबार में आया था ।
टॉलमी
इसने दुर्री शताब्दी में ‘ भारत का भूगोल ‘ नामक पुस्तक लिखी ।
प्लनी
इसने प्रथम शताब्दी में ‘ नेचरल हिस्ट्री ‘ नामक पुस्तक लिखी । इसमें भारतीय पशुओ , पेड़ – पौधों , खनिज – पर्दार्थो आदि के बारे में विवरण मिलता है ।
पेरिप्लस ऑफ थे इरिथ्रायण – सी
इस पुष्तक के लेखक के बारे में जानकारी नहीं है । यह लेखक करीब 80 ई में हिन्द महासागर की यात्रा कर आये थे । इन्होने उस समय के भारत के बंदरगाहों तथा व्यापारिक वस्तुओ के बारे में जानकारी दी है ।
सिकंदर के साथ आने वाले विद्वान
सिकंदर के साथ आने बाले लेखकों में नियार्कस , आनेसिक्रटस एवं अरिस्टोबुलस के विवरण अधिक प्रामाणिक एवं विश्वसनीय है ।
Prachin Bhartiya Itihas ke Srot me Chini Lekhko ka Varnan
(चीनी लेखकों के वर्णन )
चीनी लेखकों के वर्णन में प्रमुख 4 लेखकों का वर्णन मिलता है –
- फाहियान
- संयुगन
- हेनसांग
- इत्सिंग
फाहियान
यह चीनी यात्री गुप्त नरेश चन्द्रगुप्त द्वितीय के दरबार में आया था । इसने अपने विवरण में मध्यप्रदेश के समाज एवं संस्कृति के बारे में वर्णन किया है । इसने मण्ध्यप्रदेश की जनता को सुखी एवं समृद्ध बताया था ।
संयुगन
यह 518 ई में भारत आया । इसने अपने तीन वर्षो की यात्रा में बुद्ध धर्म की प्राप्तियाँ एकत्रित की ।
हेनसांग
यह हर्षवर्धन के शासनकाल में भारत आया था । हेनसांग 629 ई में चीन से भारतवर्ष के लिए प्रस्थान किया और लगभग एक वर्ष की यात्रा के बाद सर्वप्रथम वह भारतीय राज्य कपिशा पंहुचा । वह बिहार में नालंदा जिला स्थित नालंदा विश्वविद्यालय में अध्ययन करने तथा भारत से बुद्ध ग्रंथो को एकत्र कर ले जाने लिए आया था । इसका भ्रमण बृतान्त सि – यु – की नाम से प्रशिद्ध है , जिसमे 138 देशो का विवरण मिलता है ।
नोट – हेनसांग के अध्ययन के समय नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य शीलभद्र थे ।
इत्सिंग
यह 7 वीं शताब्दी के अंत में भारत आया । इसने अपने विवरण में नालंदा विश्वविद्यालय , विक्रमशिला विश्वविद्यालय तथा अपने समय के भारत का वर्णन दिया है ।
Prachin Bhartiya Itihas ke srot me Arbi Lekhak ka Varnan
( अरबी लेखक का वर्णन )
अरबी लेखक के वर्णन को तर्क है । कही 2 लेखकों का वर्णन मिलता है तो कही 3 , सभी जगह अलग – अलग अफवाह है , परन्तु 1 लेखक है जिनका सभी जगहों पर वर्णन मिलता है –
अलबरूनी
यह महमूद गजनबी के साथ भारत आया था । अरबी में लिखी हुई इसकी कृति ‘ किताब उल हिन्द या तहक़ीक़ – ए – हिन्द ‘ जिसका अर्थ है भारत की खोज , आज भी इतिहासकारो के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत है ।
इबन बतूता
इसके द्वारा अरबी भाषा में लिखा गया उसका यात्रा वृतांत जिसे रिह्ला कहा जाता है , 14 वीं शताब्दी में भारतीय उपमहाद्वीप के सामाजिक तथा सांस्कृतिक जीवन के विषय में बहुत ही प्रचुर तथा सबसे रोचक जानकारिया देता है ।
नोट – प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत का अंतिम टॉपिक पुरातत्व सम्बन्धी साक्ष्य के विषय में हम सब अगले भाग में पड़ेगे । ऊपर दिए गए वरन के आधार पर Competitive Exams में पूछे जाने वाले प्रश्नो के आधार पर हमने एक प्रैक्टिस सेट तैयार किया है , उसे हल करे जिससे आप परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सके ।
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