भारत के प्राचीन इतिहास के पुरातात्विक स्रोत (Puratatvik Srot)
आज हम सब प्राचीन भारत के इतिहास के स्रोत – भाग 3 में पुरातात्विक स्रोत के विषय में पड़ेगे । पिछले भाग में हमने प्राचीन भारत के इतिहास एवं स्रोत के विषय में पढ़ा जिसमे हमने साहित्यिक साक्ष्य एवं विदेशी यात्रा का विवरण के विषय में अध्ययन किआ । आज हम सब पुरातात्विक स्रोत , पुरातात्विक स्थल एवं प्रमुख अभिलेख एवं शासक के विषय में विस्तार पूर्वक अध्ययन करेंगे ।
क्रेडिट – इस पोस्ट में लिए गए सभी ज्ञान लुसेंट की सामान्य ज्ञान की पुस्तक तथा NCERT सर महेश कुमार बरनवाल जी की पुरतक से प्रेरित है एवं इन्ही पुस्तकों से सामग्री लेकर यह पोस्ट तैयार किया गया है ।
पुरातात्विक स्रोत
टीला धरती की सतह के उस उभरे हुए भाग को कहते है , जिसके निचे पुराणी बस्तियों के अवशेष विद्यमान है । ये कई प्रकार के हो सकते है , जैसे – एकल सांस्कृतिक , मुख्य सांस्कृतिक और बहु सांस्कृतिक ।
टीले की खुदाई दो तरह से की जा सकती है – अनुलम्ब और क्षैतिज ।
अनुलम्ब – उत्खनन का अर्थ सीधी खड़ी लम्बवत खुदाई करना है , जिससे कि विभिन्न संस्कृतिओ का कालक्रमिक इतिहास उद्घाटित हो सके ।
क्षैतिज – उत्खनन का तात्पर्य पुरे टीले की या उसके बृहत् भाग की खुदाई से है । इस प्रकार की खुदाई से हम उस स्थल के काल विशेष की संस्कृति का पूर्ण अनुमान लगा सकते है ।
Puratatvik Srot (पुरातात्विक स्रोत) के महत्वपूर्ण बिंदु
- दक्षिण भारत के कुछ लोग मृत व्यक्ति के शव के साथ औजार , हथियार , मिटटी , के बर्तन आदि वस्तुए भी कब्र में गाड़ते थे तथा इसके ऊपर एक घेरे में बड़े – बड़े पत्थर खड़े कर दिए जाते थे । ऐसे स्मारकों को महापाषाण ( मेगालिथ ) कहते है .
- जिस विज्ञानं के आधार पर पुराने टीलों का क्रमिक स्तरों में विधिवत उत्खनन किआ जाता है तथा प्राचीन काल के लोगो के भौतिक जीवन के विषय में भी जानकारी मिलती है , उसे पुरातत्व विज्ञानं (Archaeology) कहते है .
- Puratatvik Srot में रेडिओ कार्बन विधि द्वारा यह पता लगाया जाता है की वे किस काल से सम्बंधित है । रेडिओ कार्बन या कार्बन – १४ कार्बन का रेडिओधर्मी (रेडियोएक्टिव) समस्थानिक (आइसोटोप) है जो सभी साजीव वस्तुओ में विध्यमान होता है ।
- किसी प्राचीन वास्तु में विध्यमान कार्बन – १४ में आई कमी को माप कर उसके समय का निर्धारण किया जा सकता है ।
- पौधों के अवशेषों का परिक्षण कर विशेषतः पराग के विश्लेषण द्वारा जलवायु और वनस्पति का इतिहास जाना जाता है ।
- Puratatvik Srot के अंतर्गत पशुओ के हड्डियों का परिक्षण कर उनकी पहचान की जाती है तथा उनके पालतू होने एवं अनेक प्रकार के कार्य में लाये जाने का पता लगाया जाता है ।
- राजस्थान और कश्मीर में कृषि का प्रचलन लगभग 7000-6000 ईसा पूर्व में भी था ।
नोट – आप हमारे दूसरे वेबसाइट gradeupdigital.com पर SSC तथा Bank के Free Practice Set Solve कर सकते है ।
प्राचीन भारत में मुद्रा विज्ञानं या सिक्को का योगदान
Puratatvik Srot के अनुसार सिक्को के अध्ययन को मुद्रा शाश्त्र या Numismatics कहते है । मुद्राओ के माध्यम से भी इतिहासिक घटनाओ पर प्रकाश पड़ता है । प्राचीन कल में अधिकांश मुहरे धातुओं की बनाई जाती थी ।
जिन सिक्को या मुद्राओ पर कोई लेख नहीं होता था , केवल आकृतियाँ विध्यमान होती थी , उन्हें पंचमार्क ( आहत ) सिक्का कहा जाता था ।
ताँबे , चाँदी , सोने और सीसे के सिक्को के सांचे बड़ी संख्या में मिले है । इनमे से अधिकांश सांचे कुषाण काल के अर्थात ईसा की आरंभिक तीन सदिओं के है ।
हमारे यहाँ आरंभिक सिक्को पर तो कुछ प्रतिक मिलते है , परन्तु बाद के सिक्को पर राजाओ और देवताओ के नाम तथा तिथियां भी उल्लिखित मिलती है ।
Puratatvik Srot के अनुसार यूनानी शासको ने सर्वप्रथम सिक्को पर लेख एवं तिथियां उत्कीर्ण करने की परंपरा प्रारम्भ की ।
सिक्को का प्रयोग दान – दक्षिणा , खरीद – बिक्री और वेतन – मजदूरी के भुगतान में होता था , इसलिए सिक्को का आर्थिक इतिहास के अध्ययन में भी महत्वपूर्ण योगदान है ।
मौर्या शासको ने सर्वधिक सिक्के जारी किये । सबसे अधिक सिक्के मौर्योत्तर काल के मिले है , जो विषेशतः सीसे , पोटीन , ताम्बे , काँसे , चाँदी और सोने से निर्मित है ।
Puratatvik Srot के खोज अनुसार गुप्त शासको ने सबसे अधिक सोने के सिक्के जारी किये । सर्वाधिक शुद्ध सोने के सिक्के कुषाण शासको ने प्रचलित किये । सातवाहन शासको ने सबसे अधिक शीशे के सिक्के जारी किये थे ।
अभिलेख (Abhilekh)
Puratatvik Srot के खोज अनुसार अभिलेख सिक्को से भी अत्यधिक महत्पूर्ण है । इसके अध्ययन को पुरालेखशास्त्र (Epigraphy) कहते है ।
सर्वाधिक प्राचीन अभिलेख मध्य एशिया के बोगाजकोई से प्राप्त हुआ है । इस अभिलेख में इंद्र , वरुण , मित्र एवं नास्तय नामक वैदिक देवताओ के नाम मिलते है ।
अभिलेख एवं दूसरे पुराने दस्तावेजों की प्राचीन तिथि के अध्ययन को पुरलिपिशात्र (Palaeography) कहते है । अभिलेख मुहरों , प्रस्तरस्तंभो , स्तूपों , चट्टानों और ताम्रपत्रों पर मिलते है तथा इसके अतिरिक्त मंदिर की दीवारों , ईंटो और मूर्तियों पर भी मिलते है ।
Puratatvik Srot के खोज अनुसार अभिलेखों में प्रयुक्त लिपियाँ
ब्राही लिपि – अशोक के अधिकतर शिलालेख ब्राह्ही लिपि में है । यह लिपि बाये से दाये लिखी जाती थी ।
खरोष्ठी लिपि – अशोक के अनुसार शिलालेख खरोष्ठी लिपि में भी है , जो दाये से बाये लिखी जाती थी ।
यूनानी एवं आरमेइक लिपि – पाकिस्तान और अफगानिस्तान में अशोक के शिलालेखों में इन लीपीओ का प्रयोग हुआ है ।
Puratatvik Srot के वर्णन अनुसार मौर्या सम्राट अशोक के अनेक अभिलेख देश के विभिन्न भागो से मिले है , जिनसे साम्राज्य की सीमा , धम्म और निति पर प्रकाश पड़ता है ।
उदयगिरि से प्राप्त हाथीगुम्फा अभिलेख से कलिंग नरेश खारवेल की उपलब्धिओं के सन्दर्भ में जानकारी प्राप्त होती है ।
शक क्षत्रप रुद्रदामन के जूनागढ़ अभिलेख से शक शासक रुद्रदामन के सन्दर्भ में जानकारी प्राप्त होती है ।
पुलुमावी के नासिक गुहा अभिलेख के माध्यम से उनकी धार्मिक सहिश्डुता और उनकी संस्कृति के सन्दर्भ में जानकारी प्राप्त होती है ।
Puratatvik Srot के वर्णन अनुसार समुन्द्रगुप्त के प्रयाग स्तम्भ अभिलेख से समुद्रगुप्त की विजय व विजिट राजाओ के साथ उसकी नीतिओ से सन्दर्भ में जानकारी प्राप्त होती है ।
Puratatvik Srot के वर्णन अनुसार हड़प्पा संस्कृति के अभिलेख अभी तक पढ़े नहीं जा है । ये भावचित्रात्मक लिपि में लिखे गए है , जिसमे विचारो और वस्तुओ को चित्रों के रूप में व्यक्त किया जाता है ।
Puratatvik Srot के वर्णन अनुसार सबसे पुराने अभिलेख हड़प्पा संस्कृति की मुहरों पर मिलते है । ये लगभग 2500 ईसा पूर्व के है । इनको पड़ना अभी तक संभव नहीं हुआ है ।
सबसे पुराने अभिलेख जो पढ़े जा सके चुके है , वे ईसा पूर्व तीसरी सदी के अशोक के शिलालेख है । इन अभिलेखों को पड़ने में सर्वप्रथम सन 1837 में जेम्स प्रिन्सेप को सफलता मिली , जो उस समय बंगाल में ईस्ट इंडिया कंपनी की सेवा में ऊँचे पद पर कार्यरत थे ।
Puratatvik स्रोत के अनुसार प्रमुख अभिलेख और शासक |
||
1. | हाथीगुम्फा अभिलेख | कलिंग नरेश खारवेल हाथीगुम्फा अभिलेख |
2. | जुनागड़ अभिलेख | रुद्रदामन |
3. | नासिक अभिलेख | गौतमी बालश्री |
4. | प्रयाग स्तम्भ अभिलेख | समुद्रगुप्त |
5. | एहोल अभिलेख | पुलकेशिन – 2 |
6. | मंसौर अभिलेख | मालवा नरेश यशोवर्मन |
7. | ग्वालियर अभिलेख | प्रतिहार नरेश भोज |
8. | भीतरी व जूनागढ़ अभिलेख | स्कंदगुप्त |
9. | देवपाड़ा अभिलेख | बंगाल शासक विजयसेन |
नोट – भारत का सर्वप्रथम उल्लेख हाथी गुम्फा अभिलेख से मिलता है । |
पुरातात्विक स्तम्भ अभिलेख व उनके स्थान |
|||||
स्तम्भ अभिलेख | स्थल | समय | सम्बन्द्ध व्यक्ति | अभिलेख की विषय – वस्तु | |
1. | बौद्ध स्तम्भ लेख | भरहुत | शुंग काल | राजा बासुदेव | शुंग वंश का प्रारंभिक स्रोत है |
2. | गरुड़ स्तम्भ लेख | बेसनगर ( विदिशा ) | शुंग काल | भागभद्र | नैतिक शिक्षा की युक्ति द्वारा आत्मसंयम , त्याग व सतकर्ता में तीनो नैतिक कार्य स्वर्ग का पक्ष प्रस्तुत करते है । |
3. | प्रयाग प्रशस्ति ( स्तम्भ लेख ) | प्रयाग , इलाहबाद | गुप्तकालीन | समुद्रगुप्त | समुद्रगुप्त की विजयो का यशोगान , जिसकी रचना हरिषेण के काव्य शैली में की है । |
4. | ऐरण स्तम्भ लेख | ऐरण , मध्य प्रदेश | गुप्तकालीन | समुद्रगुप्त | समुद्रगुप्त के व्यक्तिगत मामलो की सुचना देता है । यह वैदर्भीर शैली में है । |
5. | मथुरा स्तम्भ लेख | मथुरा , उत्तर प्रदेश | गुप्तकालीन | चद्रगुप्त – 2 | Puratatvik Srot के वर्णन अनुसार प्रथम गुप्त अभिलेख जिसमे गुप्त संवत का सबसे पहला वर्ष वर्णित है । वैष्णन धर्मी गुप्त सम्राट की धार्मिक सहिष्णुता पर प्रकश पड़ता है । महेश्वर समुदाय के उदितचार्य का वर्णन मिलता है । |
6. | मेहरौली स्तम्भ लेख | मेहरौली , दिल्ली | गुप्तकालीन | चद्रगुप्त – 2 | व्यास के समीप विष्णुपाद पहाड़ी पर स्थिल था , जो वर्मन में कुतुबमीनार के पास है तथा तत्कालीन धातु विज्ञानं का उत्कृष्ट उदहारण है । |
7. | भिलसड़ स्तम्भ लेख | भिलसड़ , एटा | गुप्तकालीन | कुमार गुप्त – 1 | कुमार गुप्त प्रथम के प्रथम लेख में गुप्त सम्राटो की वंशावली का विवरण है । इसमें कार्तिकेय मंदिर का भी उल्लेख है । |
8. | भीतरी स्तम्भ लेख | भीतरी , ग़ाज़ीपुर | गुप्तकालीन | स्कन्दगुप्त | Puratatvik Srot के वर्णन अनुसार हुडो से किये गए , स्कन्दगुप्त के पराक्रमी युद्ध एवं उसके द्वारा विष्णु मूर्ति की स्थापना का उल्लेख । |
9. | बिहार स्तम्भ लेख | बिहारशरीफ , पटना | गुप्तकालीन | स्कन्दगुप्त | स्कन्दगुप्त द्वारा अश्वमेघ यज्ञ किये जाने का तथा एक स्तूप के निर्माण करने का उल्लेख । |
10. | ऐरण स्तम्भ लेख | ऐरण , मध्य प्रदेश | गुप्तकालीन | बुधगुप्त | इसमें चतुर्भुजी भगवन विष्णु का सर्वप्रथम अभिलेखीय प्रमाण तथा भगवन विष्णु की महिमा में महाराजा मातृ विष्णु एवं धन्य विष्णु द्वारा ध्वज स्तम्भ के निर्माण का वर्णन प्रस्तुत करता है । सप्ताह के दिनों के नमो का प्रारंभिक प्रयोग है । |
11. | ऐरण स्तम्भ लेख | ऐरण , मध्य प्रदेश | गुप्तकालीन | भानुगुप्त | महान पराक्रमी गोपराज के रणभूमि में शहीद हो जाए एवं उसकी पत्नी के चिता पर सती हो जाने का प्रथम उल्लेख । |
12. | तालगुंडा स्तम्भ लेख | शिमोगा , मैसूर | गुप्तकालीन | शांति वर्मन / मयूर शमरन | Puratatvik Srot के वर्णन अनुसार दक्षिण में कदम्बो के इतिहास के अध्ययन का महत्वपूर्ण स्रोत एवं कदम्ब शासक मयूरशामृन के पल्लवों से संघर्ष का उल्लेख तथा रचयता कवी के रूप में कुब्ज का उल्लेख है । |
Let’s Start Free Practice Set for Puratatvik Srot
[ld_quiz quiz_id=”9545″]
पुरातात्विक स्रोत PDF Download
தினசரி தமிழ்நாடு வேலை புதுப்பிப்புகளுக்கான டெலிகிராம் குழுவில் சேரவும்
தினசரி அரசு மற்றும் தனியார் வேலை வாய்ப்பு செய்திகளுக்கு WhatsApp குழுவில் இணைந்து கொள்ளுங்கள்