प्राचीन भारत – Part -1
प्राचीन भारत का इतिहास एक लम्बा टॉपिक है , जिसे हम एक ही भाग में नहीं पढ़ पाएंगे , इसलिए हम प्राचीन भारत के इतिहास को हम कई भागो में करके पड़ेगे तथा प्रैक्टिस सेट को भी हल करेंगे जिससे हम इस टॉपिक को कभी न भूले। General Knowledge एक ऐसा विषय है जो लगभग सभी Competitive Exams में पूछे जाते है , तो आइये हमारा आज का टॉपिक प्राचीन भारत का इतिहास शुरू करते है ।
क्रेडिट – इस पोस्ट में लिए गए सभी ज्ञान लुसेंट की सामान्य ज्ञान की पुस्तक तथा NCERT की पुरतक से प्रेरित है एवं इन्ही पुस्तकों से सामग्री लेकर यह पोस्ट तैयार किया गया है ।
हमारे दूसरे पोस्ट Noun and Types of Noun को पढ़े तथा Practice Set हल करे ।
प्राचीन भारत का इतिहास
उत्तर में हमालय से लेकर दक्षिण में समुद्र तक फैला यह उपमहाद्वीप भारतवर्ष के नाम से ज्ञान है , जिसे महाकाव्य तथा पुराणों में ‘ भारतवर्ष ‘ अर्थात ‘ भरत का देश ‘ कहा गया है । यूनानिओ ने भारत को ‘इंडिया’ तथा मध्यकालीन मुस्लिम इतिहासकारो ने ‘हिन्द‘ अथवा हिंदुस्तान के नाम से सम्बोधित किया है ।
प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत
प्राचीन भारतीय इतिहास के विषय में जानकारी मुख्यतः चार स्रोतों से प्राप्त होती है –
1 . धर्मग्रंथ
2 . ऐतिहासिक ग्रन्थ
3 . विदेशिओ का विवरण
4 . पुरातत्व सम्बन्धी साक्ष्य
कई इतिहासकार प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोतों को तीन भागो में ही वर्णित करते है –
1 . साहित्यिक साक्ष्य
2 . विदेशी यात्रा का विवरण या विदेशिओ का विवरण
3 . पुरातात्विक साक्ष्य
प्राचीन भारत का इतिहास में धर्मग्रंथ एवंग ऐतिहासिक ग्रन्थ का वर्णन
कई इतिहासकार धर्मग्रंथ तथा इतिहासिक ग्रन्थ को मिलकर साहित्यिक साक्ष्य को इतिहास के स्रोत मानते है , तो आइये इनसे मिलने वाली जानकारी पर प्रकाश डालते है –
प्राचीन भारत का इतिहास में जैसा वर्णन किआ गया है , उस हिसाब से भारत का सर्वप्राचीन धर्मग्रंथ वेद है , जिसके संकलनकर्ता महर्षि कृष्णा द्वैपायन वेदव्यास को माना जाता है । समाज में प्रमुख चार वेद है ।
1 . ऋग्ग्वेद
2 . यजुर्वेद
3 . सामवेद
4 . अथर्ववेद
प्राचीन भारत का इतिहास पड़ने पर हमें पता चलता है कि समाज के प्रमुख चार वेदो का परिचय निम्नलिखित है –
ऋग्ग्वेद
ऋचाओं के क्रमबद्ध ज्ञान के संग्रह को ऋग्ग्वेद कहा जाता है । इसमें 10 मंडल , 1028 सूक्त ( वालयखिलया पाठ के 11 सूक्तो सहित ) एवंग 10462 रचनाये है ।
इस वेद के रचनाओं के पढ़ने वाले ऋषि को होतृ कहते है । इस वेद से आर्य के राजनितिक प्रणाली एवंग इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है ।
विश्वामित्र द्वारा रचित ऋग्ग्वेद के तीसरे मंडल में सूर्य देवता सावित्री को समर्पित प्रसिद्ध गयात्री मंत्र है । इसके 9 वे मंडल में देवता सोम का उल्लेख है ।
इसके 8वे मंडल की हस्तलिखित रचनाओं को खिल कहा जाता है ।
चतुष्वर्य समाज की कल्पना का आदि स्रोत ऋग्ग्वेद के 10वे मंडल में वर्णित पुरुषसूक्त है , जिसके अनुसार चार वर्ण ( ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य तथा शूद्र ) आदि पुरुष ब्रम्हा के क्रमशः मुख , भुजाओ , जंघाओं और चरणों से उत्पन हुए ।
नोट – धर्मसूत्र चार प्रमुख जातिओ की स्थितिओ , व्यवसायों , दायित्वों , कर्तव्यों तथा विशेषाधिकारों में स्पष्ट विभेद करता है ।
ईसा पूर्व एवं ईसवी
वर्तमान में प्रचलित ग्रेक्योरियाँ कैलेंडर ( ईसाई कैलेंडर / जूलियन कैलेंडर ) ईसाई धर्मगुरु ईसा महीह के जन्म – वर्ष ( कल्पित ) पर आधारित है । ईसा महीह के जन्म के पहले के समय को ईसा पूर्व कहा जाता है । ईसा पूर्व में वर्षो की गिनती उलटी दिशा में होती , जैसे महात्मा बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में एवं मृत्यु 483 ईसा पूर्व में हुआ । ईसा महीह की जन्म तिथि से आरम्भ हुआ सन्न , ईसवी सन्न कहलाता है ।
ऋग्ग्वेद में इंद्रा के लिए 250 तथा अग्नि के लिए 200 रचनाओं की रचना की गई है ।
नोट – प्राचीन इतिहास के साधन के रूप में वैदिक साहित्य में ऋग्ग्वेद के बाद शतपथ ब्राह्मण का स्थान है ।
यजुर्वेद
सशवर पाठ के लिए मंत्रो तथा बलि के समय अनुपालन के लिए नियमो का संकलन यजुर्वेद कहलाता है । इसके पाठकर्ता को अध्वर्यु कहते है ।
यह एक ऐसा वेद है जो गद्य एवं पद्य दोनों में है ।
सामवेद
यह गऐ जा सकते वाली रचनाओं का संकलन है । इसके पाठकर्ता को उद्रातृ कहते है ।
इसे भारतीय संगीत का जनक कहा जाता है ।
सामवेद में सांगीतिक विषय भी समाहित है ।
अथर्ववेद
अथर्ववेद का नाम अथर्वा ऋषि के नाम पर रखा गया है । अथर्वा ऋषि द्वारा रचित इस मेड में रोग , निवारण , तंत्र – मंत्र , जादू – टोना , शाप , वशीकरण , आशीर्वाद , स्तुति , प्रायष्चित , औषधि , अनुसन्धान , विवाह प्रेम , रजक्रम , मातृभूमि महात्मय आदि विविध विषयो से सम्बन्ध मन्त्रतथा सामान्य मनुष्यो के विचारो , विश्वासों , अंधविश्वासों इत्यादि का वर्णन है । अर्थवेद कन्याओं के जन्म की निंदा करता है । इसमें सभा एवं समिति को प्रजापति की दो पुत्रिया कहा गया है ।
नोट – सबसे प्राचीन वेद ऋग्ग्वेद एवं सबसे बाद का वेद अर्थर्वेद है ।
वेदो को भली भाटी समझने के लिए छह वेदांगो की रचना हुई । ये है – शिक्षा , ज्योतिषी , कल्प , व्याकरण , निरुक्त तथा छंद ।
भारतीय इतिहासिक कथाओ का सबसे अच्छा क्रमबद्ध विवरण पुराणों में मिलता है । इसके रचियता लोमहर्ष अथवा इनके पुत्र उग्रश्रवा मने जाते है इनकी संख्या 18 है , जिनमे के केवल पांच – मत्स्य , वायु , विष्णु , ब्राह्मण एवं भगवत में ही राजाओ की वंशीवाली पाई जाती है ।
नोट – पुराणों में मत्स्यपुराण सबसे प्राचीन एवं प्रामाणिक है ।
अर्थववेद में अधिकतर पुराण सरल संस्कृत श्लोक में लिखे गए है । स्तरीय तथा शूद्र जिन्हे वेद पड़ने की अनुमति नहीं थी , वे भी पुराण सुन सकते थे । पुराणों का पाठ पुजारी मंदिरो में किया करते थे ।
स्त्रिओ की सर्वधिक गिरी हुई स्थिति मैत्रेयनि संहिता से प्राप्त होती है जिसमे जुआ और शराब की भांति स्त्री को पुरुष का तीसरा मुख्या दोष बताया गया है ।
जातक में बुद्ध की जन्म की कहानी वर्णित है । हीनयान का प्रमुख ग्रन्थ ‘ कथावस्तु ‘ जिसमे महात्मा बुद्ध का जीवम चरित अनेक कथानकों के साथ वर्णित है ।
अर्थशात्र के लेखक चाडक्य ( कॉलिल्य एवं विष्णुगुप्त ) है। यह 15 अधिकरणों एवं 180 प्रकरणों में विभाजित किया गया है । इसमें मौर्या कालीन इतिहास की जानकारी प्राप्त है ।
संस्कृत साहित्य में इतिहासिक घटनाओ को क्रमबद्ध लिखने का सर्वप्रथम प्रयास कल्हण के द्वारा किया गया । कल्हण द्वारा रचित पुस्तक राजतरंगिणी है , जिसका सम्बन्ध कश्मीर के इतिहास से है । अरबो की सिंध – विजय का वृतांत चचनामा ( लेखक – अली अहमद ) में है ।
‘अष्टाध्यायी’ संस्कृत भाषा व्याकरण की प्रथम पुस्तक है जिसके लेखक पाणिनि है । जिससे मौर्या के पहले का इतिहास तथा मौर्ययुगीन राजनीतिक अवस्था की जानकारी प्राप्त होती है ।
कल्याण की गार्गी – संहिता एक ज्योतिष ग्रन्थ है , फिर भी इसमें भारत पर होने वाले यावन आक्रमण का उल्लेख मिलता है ।
पतंजलि पुष्पमित्र शुंग के पुरोहित थे , इनके महाभस्य के शुंगो के इतिहास का पता चलता है ।
भारत के इतिहास भाग – 1 में हमने भारत का प्राचीन इतिहास तथा उनके स्रोतों में धर्मग्रंथ एवं इतिहासिक ग्रन्थ के विषय में जाना है । आगे भारत के इतिहास भाग – 2 में विदेशो का विवरण तथा पुर्वत्व सम्बन्धी साक्ष्य के विदेशी में पड़ेगे तथा Practice सेट हल करेंगे ।
आइये अब हम भारत के प्राचीन इतिहास भाग – 1 तथा प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत से पड़े हुए धर्मग्रंथ तथा इतिहासिक ग्रन्थ का Practice Set हल करते है तथा अपने आप को परखते है कि आज हमने कितनी पड़े की।
भारत का प्राचीन इतिहास भाग – 1 से Competitive Exams में पूछे जाने वाले कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न का Practice Set हल करे
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